मैंने सुना है, एक पागल खाना था हिन्दुस्तान के बंट वारे के समय। हिन्दुस्तान पाकिस्तान की सीमा पर। अब वह भी सवाल उठा कि इस पागल खाने को कहां जाने दे—हिन्दुस्तान में कि पाकिस्तान में। कोई राजनैतिक उत्सुक न था कि वह पागलखाना कहीं भी ला जाये। तो पागलों से ही पूछा अधिकारियों ने कि तुम कहां जाना चाहते हो। हिन्दुस्तान में या पाकिस्तान में? तो उन पागलों ने कहा हम तो जहां है, वहां बड़े आनंद में है। हमें कहीं जाने की कोई इच्छा नहीं है।
पर उन्होंने कहा कि जाना तो पड़ेगा ही, यह इच्छा का सवाल नही है। और तुम घबराओ मत। तुम हिन्दुस्तान में चाहो तो हिन्दुस्तान में चले जाओ,पाकिस्तान में चाहो तो पाकिस्तान में चले जाओ। तुम जहां हो वहीं रहोगे। यहां से हटना न पड़ेगा।
तब तो वे पागल बहुत हंसने लगे। उन्होंने कहा,हम तो सोचते थे कि हम ही पागल है। लेकिन ये अधिकारी और भी पागल मालूम पड़ता है। क्योंकि ये कहता है कि जाना कहीं न पड़ेगा और पूछते है जाना कहां चाहते हो। उन पागलों ने कहा, कि जब जाना ही नहीं पड़ेगा तो जाना चाहते हो का सवाल क्या है? उन पागलों को समझाना बहुत मुश्किल हुआ। आखिर आधा पागलखाना बीच से दीवार उठाकर पाकिस्तान में चला गया, आधा हिन्दुस्तान में चला गया।
मैंने सुना है कि अभी वे पागल एक दूसरे की दीवार पर चढ़ जाते है और आपस में सोचते है कि बड़ी अजीब बात है, हम वहीं के वहीं है, लेकिन तुम पाकिस्तान में चले गये हो और हम हिन्दुस्तान में चले गये है।
ये पागल हमसे कम पागल मालूम होत है। हमने जमीन को बांटा है, आदमी को बांटा है |
In relevence to “Am i a patriot”
मैंने सुना है, एक पागल खाना था हिन्दुस्तान के बंट वारे के समय। हिन्दुस्तान पाकिस्तान की सीमा पर। अब वह भी सवाल उठा कि इस पागल खाने को कहां जाने दे—हिन्दुस्तान में कि पाकिस्तान में। कोई राजनैतिक उत्सुक न था कि वह पागलखाना कहीं भी ला जाये। तो पागलों से ही पूछा अधिकारियों ने कि तुम कहां जाना चाहते हो। हिन्दुस्तान में या पाकिस्तान में? तो उन पागलों ने कहा हम तो जहां है, वहां बड़े आनंद में है। हमें कहीं जाने की कोई इच्छा नहीं है।
पर उन्होंने कहा कि जाना तो पड़ेगा ही, यह इच्छा का सवाल नही है। और तुम घबराओ मत। तुम हिन्दुस्तान में चाहो तो हिन्दुस्तान में चले जाओ,पाकिस्तान में चाहो तो पाकिस्तान में चले जाओ। तुम जहां हो वहीं रहोगे। यहां से हटना न पड़ेगा।
तब तो वे पागल बहुत हंसने लगे। उन्होंने कहा,हम तो सोचते थे कि हम ही पागल है। लेकिन ये अधिकारी और भी पागल मालूम पड़ता है। क्योंकि ये कहता है कि जाना कहीं न पड़ेगा और पूछते है जाना कहां चाहते हो। उन पागलों ने कहा, कि जब जाना ही नहीं पड़ेगा तो जाना चाहते हो का सवाल क्या है? उन पागलों को समझाना बहुत मुश्किल हुआ। आखिर आधा पागलखाना बीच से दीवार उठाकर पाकिस्तान में चला गया, आधा हिन्दुस्तान में चला गया।
मैंने सुना है कि अभी वे पागल एक दूसरे की दीवार पर चढ़ जाते है और आपस में सोचते है कि बड़ी अजीब बात है, हम वहीं के वहीं है, लेकिन तुम पाकिस्तान में चले गये हो और हम हिन्दुस्तान में चले गये है।
ये पागल हमसे कम पागल मालूम होत है। हमने जमीन को बांटा है, आदमी को बांटा है |
-ओशो